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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
"हिन्दी में गीतिकाव्य के लेखन का प्रारम्भ विद्यापति ने ही किया और उसे पूर्णता भी प्रदान किया।' इस कथन के आधार पर उनके गीतिकाव्य का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर -

'गीतिकाव्य' कविता का सर्वाधिक लोकप्रिय और परम्परा प्रशंसित प्रकार है। मानव-मन के अत्यन्त निकट और उसी से निष्पन्न होने के कारण इस काव्य विधा ने हजारों वर्षों से निरन्तर समष्टि-चित्त को प्रभावित किया है। गीतिकाव्य क्या है? आरम्भ से यह प्रश्न स्वाभाविक है, किन्तु जिस प्रकार कविता की कोई सुनिश्चित और सर्वमान्य तथा पूर्ण परिभाषा उपस्थित कर सकना सम्भव नहीं है, उसी प्रकार गीतिकाव्य की भी कोई खास परिभाषा नहीं है।

गीतिकाव्य की परिभाषाएँ - गीतिकाव्य की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित है -

हीगल के अनुसार "गीतिकाव्य में किसी ऐसे व्यापक कार्य का चित्रण नहीं होता जिससे बाह्य संसार के विभिन्न रूपों एवं ऐश्वर्य का उद्घाटन हो, उसमें तो कवि की निजी आत्मा के ही किसी एक रूप विशेष के प्रतिबिम्ब का निदर्शन होता है। उसका एकमात्र उद्देश्य शुद्ध कलात्मक शैली में आन्तरिक जीवन की विभिन्न अवस्थाओं, उनकी आशाओं, उनके आह्लाद की तरंगों, और उनकी वेदना की चीत्कारों का उद्घाटन करना ही है।

अर्नेस्टरिस के विचारानुसार - "गीतिकाव्य एक ऐसी संगीतमय अभिव्यक्ति है, जिसके शब्दों पर भावों का पूर्ण आधिपत्य होता है, किन्तु जिसकी प्रभावशालिनीलय में सर्वत्र उन्मुक्तता रहती है।'

जान डिन्क वाटर के कथनानुसार - "गीतिकाव्य एक ऐसी अभिव्यंजना है, जो विशुद्ध काव्यात्मक (भावात्मक) प्रेरणा से व्यक्त होती है तथा किसी अन्य प्रेरणा के सहयोग की अपेक्षा नहीं रहती।'

प्रो0 गमर ने लिखा है कि "गीतिकाव्य वह अन्तर्वृत्ति निरूपिणी कविता है जो वैयक्तिक अनुभूतियों से पोषित होती है, जिसका सम्बन्ध घटनाओं से नहीं अपितु भावनाओं से होता है तथा जो किसी समाज की परिष्कृत अवस्था में निर्मित होती है।"

हड्सन के विचारानुसार - "वैयक्तिकता की छाप गीतिकाव्य की सबसे बड़ी कसौटी है, किन्तु वह व्यक्ति वैचित्र्य में सीमित रहकर व्यापक मानवीय भावनाओं पर आधारित होती है, जिससे प्रत्येक पाठक उसमें अभिव्यक्त भावनाओं एवं अनुभूतियों से तादात्म्य स्थापित कर सके।'

 

डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने उपर्युक्त परिभाषाओं को समन्वित रूप देते हुए एक परिभाषा दी है - 'गीतिकाव्य एक ऐसी लघु आकार एवं मुक्त शैली में रचित रचना होती है, जिसमें कवि अनुभूतियों या किसी एक भाव-दशा का प्रकाशन संगीत पर लयपूर्ण कोमल शब्दावली में करता है।'

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर गीतिकाव्य के छः तत्व निर्धारित किये जा सकते हैं -

(1) भावात्मकता
(2) स्वानुभूति का प्रकाशन या वैयक्तिकता
(3) संगीतात्मकता,
(4) शैली की कोमलता एवं मधुरता
(5) संक्षिप्तता
(6) मुक्तक शैली।

विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन उपर्युक्त तत्वों के आधार पर हम कर रहे हैं -

(1) भावात्मकता - डॉ. चार्ल्स मिल्स ने लिखा है कि "वस्तुतः गीतिकाव्य को ही कविता कहा जा सकता है। किसी कृति-विशेष में काव्यात्मकता जितनी अधिक होती है, वह उसी अनुपात में गीतात्मक है। नाटक जितना ही काव्यात्मक होगा, वह उतना ही गीति तत्व से पूर्ण होगा। महाकाव्य जितना ही अधिक काव्यात्मक हो, उतना ही गीतात्मक होता है।' स्पष्ट है कि गीतिकाव्य का एक अत्यन्त आवश्यक धर्म उसका भाव प्रधान होना है।

विद्यापति के गीतों में भावात्मकता अपने चरमोत्कर्ष पर है एक उदाहरण देखिए नायक कृपा नायिका को अकेला रात में छोड़कर मथुरा चला जाता है और चकवा चकवी का यह जोड़ा बिछुड़ जाता है। उसके गमन का समाचार पाते ही नायिका राधा बड़ी दुखी होती है और कहती है कि "कल शाम को ही तो प्रियतम ने मुझसे कहा था कि मैं मथुरा जाऊँगा, किन्तु मुझ हतभागिनी इसका पता भी नहीं चला, नहीं तो मैं योगिनी का वेश धरकर उनके साथ अवश्य चली जाती अरे, रात में एक शय्या पर तो मैं उनके साथ सोई हुई थी, किन्तु पता ही नहीं चला कि वे किस समय मुझे छोड़कर चले गये और चकवा का यह जोड़ा बिछुड़ गया। आज प्रियतम के बिना सूनी शय्या मेरे हृदय को व्यथित कर रही है। हे सखी! मैं प्रार्थना करती हूँ कि मेरे लिए चिता तैयार कर दो -

"कलि कहल पिया ए सांझहि रे, जाएब मोयँ मारू देस।
मोय अमागलि नहि जानलि रे, संग जइतओं जोमिन वेस।
हृदय मोर बड़ दारून रे, ह्विया बिनु बिहरि न जाए।
एक सयन सखि सूतल रे, आछल बालम निस मोर।
न जानल कति खन तेजि गेल रे, बिछुरल चकेवा जोर।
सून सेज हिय सालए रे, पिया बिनु घर मोयें आजि।
बिनति करओ सह लोलिनि रे, मोहि देर अगिहर साजि।"

इस प्रकार हम देखते हैं कि विद्यापति के गीतों में भावात्मकता के दर्शन पर्याप्त रूप में मिलते हैं।

2. वैयक्तिकता - स्वानुभूति का प्रकाशन-भावों की प्रधानता और कोमल अनुभूतियों की वस्तु में स्वीकार करने के कारण गीतिकाव्य स्वभावतः आत्मपरक हो जाता है। कवि अपने अनुभूत भावों को गीति में ढालता है, वस्तुगत विचारों से बचने के कारण उसकी कृति स्वभावतः ही वैयक्तिक और आत्मपरक होती है। वस्तु की दृष्टि से गीतिकाव्य ज्यादा आत्मपरक होता है, अर्थात् उसमें मानवीय संवेदनात्मक तत्वो- इच्छा, संवेग, भावना आदि की प्रधानता होती है। विद्यापति के गीतों में यह तत्व अपने चरमोत्कर्ष पर है। विद्यापति प्रणय - गाथा का वर्णन अपने काव्यों में करते हैं, वह उनकी नहीं उनके नायक राज एवं नागरी राधा की है, किन्तु फिर भी उन्होंने एक ऐसी शैली अपनाई है जिससे उनकी गीतियों में वैयक्तिकता का समावेश हो जाता है, जैसेकि निम्नलिखित पंक्तियों में हुआ है -

(1) कतन वेदन मोहि देहि मदना। -
(2) कहहि मो सखि कहहि मो
     तक तकर अधिवास।
(3) की मोरा जीवन की मोरा जीवन
      कि मोरा चतुरपने।
(4) सखि हे आज आइब मोहि।
     घर गुरुजन डर न मानव, वचन चूकब नाहिं॥

यहाँ यह दृष्टव्य है कि कवि नायक-नायिका के लिए "अन्य पुरुष" वाची सर्वनामों का प्रयोग न करके उत्तम पुरुष में उनकी अनुभूतियों को व्यक्त करता है, जिससे इनमें वैयक्तिकता का गुण आ गया है।

संगीतात्मकता - विद्यापति के गीतों की सबसे बड़ी विशेषता है संगीतात्मकता। विद्यापति स्वयं एक बहुत बड़े संगीतज्ञ थे, गायक होने के प्रमाण तो नहीं मिलते। वैसे अपने बहुत से पदों के अन्त में वे सर्वत्र 'विद्यापति कवि गाओल' ही लिखते हैं। कवि ने अपने गीत के लिए राग-रागिनियों का निर्णय कर दिया है डॉ. सुभग झा द्वारा सम्पादित विद्यापति - गीत संग्रह में जितने भी पद दिये हुए हैं, वे सभी रागबद्ध हैं। विद्यापति के गीतों में मालव राग आसावरी राग', 'मालारी राग', 'सामरी राग', 'अहिरा नी राग', 'केदार 'राग', 'सामरी राग', 'अहिरा नी राग', 'केदार राग', 'कानडा राग का समावेश हुआ है। विद्यापति के कुछ गीतों में शब्दों के साथ कहीं-कहीं लेखक ने वाद्य स्वरों को भी दे दिया है, जैसे ये गीत गाये जाने के लिए ही लिखे गये थे। जैसे -

"बाजत द्रिगि द्रिगि धैद्रिय द्रिमिया
नटति कलावति माति स्याम संग
कर करताल प्रबन्धक ध्वनिया।
डम डम डंफ डिमिक डिम मादल
रून झुन मंजीर बोल।
किंकिन रन रनि बलआ कनकनि
निधुवन रास तुमुल उतरोल।"

ऐसे पदों को देखने से विद्यापति न केवल संगीत-प्रेमी बल्कि संगीतज्ञ प्रतीत होते हैं। लेकिन बहुत से गीत ऐसे हैं, जो संगीत के तत्वों से स्पष्ट तथा बाधित होकर अपनी आत्मा की संगीतमयता के कारण हमें प्रभावित करते हैं। इन पदों में शब्द और अर्थ की गुरुता ही होती, इनके शब्द अत्यन्त सहज और बहुप्रचलित शब्द सांकेतिक ढंग से भाव की अभिव्यक्ति कर देते हैं ऐसे शब्द जो सैकड़ों वर्षों से जन- मानस में उसी अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त होते आ रहे हैं - इसी कारण ऐसे पदों में भाव की अभिव्यक्ति शब्द से नहीं, लय की आत्मा के आधार पर होती है। जैसे -

"कुंज भवन सँय निकसलि रे, रोकल गिरधारी।
एकहि नगर बस माधव रे, जनि कर बटमारी।
छांड़ कन्हैया मोर आचर रे, फाटत नव सारी।
अपजस हो एत जगत भरि रे, जनि करिअ उधारी।
संग क सखी अगुआइल रे, हम एकसारि नारि।
दामिनि आइ तुलाइल रे, एक राति आँधियारि।'

इस गीत के संबंध में डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने लिखा है - "शब्द निर्व्याज सहज है। अलंकरण का कहीं नाम नहीं पूरे, पद में एक खास प्रकार का उल्लास भरा आग्रह, लय की बार-बार टूटती, उठती मनुहार और इन सबके ऊपर जैसे सहज शब्दों के प्रयोग, जो इस गीत को प्राणवान बनाते हैं। एक बात और ध्यान देने की है। कवि ने बड़ी योग्यता से ऐसे गीतों में भाव की एकसूत्रता की भी रक्षा की है। वैसे उस गीत की सहजता के भीतर अर्थ की कमी नहीं है, संकेत प्रचुर है - सब कुछ ऊपर से कहा जा रहा है, सखी का निर्जन में होना, बिजली की भयकारी स्थिति, जिसे उन्होंने बिजली की तुलाइत, तुलित होना कहा है तथा रात की अँधियारी - गोपी के प्रेम के उच्छवास के संकेत हैं, आवर्जन के नहीं।"

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विद्यापति के गीतों में संगीतात्मकता का पूर्ण समावेश हुआ है। विद्यापति के कई गीत इतने अधिक लोक तत्व ग्राही हैं कि वे बिल्कुल लोकगीत मालूम पड़ते हैं। जैसे -

मोरे रे अंगनवां चनन केरि गछिया
ताहि चढ़ कुररय काग रे।
सोने चोंच बँधि देव तोयँ वायस
जयौ पिया आवत आज रे।
ॐ गावह सखि सब झूमर लोरी
मदन अराधन जाऊ रे।
चओ दिसि चम्पा मओली फूलल
चान इजोरिया रात रे।

(4) शैली की कोमलता एवं मधुरता - विद्यापति के गीतों में शैली की कोमलता एवं मधुरता देखने लायक है। एक उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं। -

सुतलि छलहुँ हम घरवारे
गरवा मोतिहार
राति जखनि भिनुसरवारे
पिया आयल हमार
कर कौसल कर कपँइत रे
हरवा उर टार
कर पंकज उर थपइतरे
मुख चन्द निहार
केहनि अभागिल बैरनि रे
भागलि मोर निन्द
भल कए नहि देखि पाओल रे
गुनमय गोबिन्द।

विरहिणी नायिका का यह स्वप्न एक ओर उस स्वप्न में भी प्रिय के स्पर्श के कल्पित सुख का असमय नींद टूट जाने के कारण तिरोधान तथा इससे उत्पन्न एक निविड़ वेदना का कितना सहज और स्वाभाविक चित्रण हुआ है। विरहिणी अपने प्रिय के प्रत्येक स्पर्श का वर्णन कितनी ईमानदारी और निश्छल भाव के साथ करती है।

(5) संक्षिप्तता - संक्षिप्तता विद्यापति के गीतों की अन्यतम विशेषता है। थोड़े में अधिक कहने की कला विद्यापति के पदों की मुख्य विशेषता है। विद्यापति पूरे गीत में किसी एक परिस्थिति को लेकर उससे सम्बन्धित भावनाओं का चित्रण अनुभूति से पूर्ण इस प्रकार वेण्टित कर देते हैं कि वह विशुद्ध भावावेग का रूप धारण कर लेता है -

सहजहि आनन सुन्दर रे, भौंह सुरेखलि आँखि।
पंकज मधु पिवि मधुकर रे, उड़ए पसारल पांखि।
            ,
ततहि धाओल दुइ लोचन रे, जतहि, ग्रलि वर नारि।
आसा लुबुधल न तेजए रे, कृपन क पाछि भिखारि।

यहाँ सौन्दर्य की स्थूल रूप-रेखाओं का चित्रण कम है, उससे सम्बन्धित आकांक्षाओं, लालसाओं एवं विभिन्न भावानुभूतियों की व्यंजना अधिक है। पंक्ति के अन्त में 'रे' की आवृत्ति से तो द्रवीभूत हृदय की सरलता स्पष्ट रूप से मुखरित हो रही है। इस तरह संक्षिप्तता का गुण विद्यापति के सभी पदों में देखा जा सकता है।

(8) मुक्तक शैली - गीतिकाव्य मुक्तक शैली में रची गई रचना होती है। एक पद में एक ही भाव की विवृत्ति होती है। चूँकि यह गेय होता है, इसलिए एक भाव का एक पद में समापन आवश्यक होता है। विद्यापति के प्रत्येक गीति पूर्वा परक्रम की नियमबद्धता से मुक्त होकर पूर्णतया मुक्तक काव्य की कोटि में आते हैं। एक उदाहरण देखिए -

सुधा मुखि के पिहि निरमल बाला
अपरूत रूपमनोभव मंगल त्रिभुवन विजयी माला।
सुन्दर बदन चारु अरु लोचन काजर रंजित भेला।
कनक कमल मद्य काल भुजंगिनि श्रीयुत खंजन खेला।
नाभि-विवर सगँ रोम लतावलि भुजंगिनिसास-पियासा।
नासा-खगपति-चंचु भरमबय कुच-गिरि-सन्धि निवासा।
तिन बान मदन तजल तिन भुवने अवधि रहल दओ बाने।
विधि बड़ दारुन बधए रसिक जन सोंपल तोहर नयानें।

विद्यापति सम्भवतः अपने काल के इस तरह के अद्वितीय कवि थे, उन्होंने गीत को उसकी स्वाभाविक प्रकृति को पहचान कर एक अभिनव पूर्णता और उत्कर्षता प्रदान की।

डॉ. शिव प्रसाद सिंह ने विद्यापति के गीतों के सम्बन्ध में कहा - "विद्यापति में लय और तर्ज की मौलिकता तो है ही, एक अछूती भाव संवेदन को व्यक्त करने में समर्थ ग्राम्यता या नैसर्गिकता भी दिखाई पड़ती है। इसी कारण गीतों में इतनी आत्मीयता और निकटता भरी है कि अपढ़, गँवार व्यक्ति भी इनका पूरा प्रभाव ग्रहण कर लेता है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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